मेरे मुक्तिदाता
कैसे मान लू की तू पल पल में शामिल नहीं।
कैसे मान लू की तू हर चीज़ में हाज़िर नहीं ।
देर मैने ही लगाईं तुझे पहचानने में हे जगदीश्वर।
वरना जो तुने मुझे दिया उसका तो कोई हिसाब ही नहीं।
जैसे जैसे मैं सर को झुकाता चला गया।
वैसे वैसे तू मुझे और उपर उठाता चला गया।
धन्यवाद देता हूं, मेरे ईश्वर तुझे, तेरे सारे वरदानों के लिये।
इस अकिॅचन की औकात ही क्या हे विधाता तेरे सामने ।
फा. विन्सेंट सालबातोरी
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