कोई नही देगा
साथ तेरा यहॉं
हर कोई यहॉं
खुद ही में
मशगुल है
जिंदगी का बस
एक ही ऊसुल
है यहॉं,
तुझे गिरना भी
खुद है और
सम्हलना भी खुद है.
'पायल ' हज़ारों
रूपये में आती
है
पर पैरो' में
पहनी जाती है
और
‘बिंदी ' एक
रूपये में आती
है
मगर ‘माथे ' पर
सजाई जाती है.
इसलिए कीमत मायने
नहीं
रखती उसका कृत्य
मायने रखता हैं.
एक 'किताबघर' में
पड़ी “गीता " और “कुरान
"
आपस में कभी
नहीं लड़ते,
और जो उनके
लिए लड़ते हैं
वो कभी उन
दोनों को नहीं
“पढ़ते ".
'नमक ' की
तरह 'कड़वा ' ज्ञान
देने वाला ही
' सच्चा मित्र ' होता
है.
' मीठी ' बात
करने वाले तो
' चापलूस ' भी होते
है.
इतिहास गवाह है
की आज तक
कभी ' नमक ' में
' कीड़े ' नहीं पड़े
और 'मिठाई' में
तो अक़्सर ' कीड़े ' पड़
जाया करते है.
"अच्छे मार्ग”
पर कोई व्यक्ति नहीं
जाता
पर “बुरे मार्ग
" पर
सभी जाते है
इसीलिये “दारू " बेचने वाला कही
नही जाता,
पर “दूध बेचने"
वाले को
घर, गली-गली,
कोने-कोने जाना
पड़ता है
और दूध वाले
से बार-बार
पूछा जाता है
कि “पानी तो
नही डाला “?
पर दारू मे
खुद “हाथो से
पानी " मिला-मिला पीते
है
वाह रे दुनियाँ और
दुनियाँ की रीत
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